पति पत्नी के बीच नहीं हो सकता रेप: दिल्ली हाईकोर्ट

नई दिल्ली, 13 जनवरी (दिल्ली क्राउन): राजधानी दिल्ली के हाईकोर्ट में बुधवार को ‘एमिकस क्यूरी’ ने कहा की पति के साथ बगैर सहमति के यौन संबंध को पत्नी दुष्कर्म नही कह सकती है। क्योंकि भारतीय दण्ड साहिता की धारा 375 के तहत एक पुरुष को पत्नी के साथ यौन संबंध को दुष्कर्म के आधार पर छूट देती है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति राजीव शंखधर और न्यायमूर्ति श्री हरी शंकर की पीठ ने इस अपवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी की जब दो लोग एक ही छत के नीचे बतौर पति पत्नी रह रहे होते हैं और महिला के साथ कुछ होता तो उसे दुष्कर्म माना जाता है लेकिन यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ संबंध बगैर सहमति के बनाता है तो यह दुष्कर्म नहीं है।
एमिकस क्यूरी राज शेखर ने कहा कि यह बात महिला भली भांति समझ सकती है कि यदि कोई अजनबी उसके साथ ऐसा करता है तो वह दुष्कर्म है। लेकिन यदि उसका प्रियजन विवाहोप्रांत संबंध बनाता है तो वह दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता कानून उसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखता है।लेकिन इस मामले में नियुक्त दूसरे एमिकस क्यूरी रेबेकर जॉन ने इस बात पर आपत्ति जताई और कहा कि यह कानून महिला के अस्तित्व को ही अमानवीय बनाता है। उन्होंने आगे बताया कि “हमें खुद से यह सवाल पूछना है की क्या हम कोर्ट में बैठकर किसी महिला को विवाहित जीवन में रोजाना ऐसी स्थिति में देख सकते हैं?
इस बात पर राव ने कहा कि जबतक कानून में मौजूदा प्रावधान हैं तब तक समाज इसे दुष्कर्म स्वीकार नहीं करेगा।केवल मामलों की संख्या को देखकर संविधान पर सवाल उठाने की वजह नहीं है। प्रावधान के तहत पति का पत्नी के साथ संबंध बनाना जायज है। लेकिन अगर कोई पुरुष प्रेमालाप के दौरान शादी से पांच मिनट पहले भी किसी महिला से जबरदस्ती करता है, तो यह स्पष्ट तौर पर एक अपराध है। मगर शादी के बाद अगर ऐसा होता है तो उसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रख सकते हैं।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति शंकर ने कहा कि इन कार्यवाही में अदालत को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी कि जबरन कृत्य एक अपराध नहीं है। ऐसा नहीं है कि विधायिका इसे एक अपराध नहीं मानती है। इसे दुष्कर्म नहीं माना जाना चाहिए। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में रखने की मांग संबंधी याचिकाओं का, पुरुषों के एक समूह द्वारा संचालित एनजीओ मेन वेलफेयर ट्रस्ट (एमडब्ल्यूटी) ने विरोध किया था। इसमें कहा गया था कि विवाहित महिलाओं को उनके पतियों द्वारा यौन हिंसा के खिलाफ कानून के तहत पर्याप्त सुरक्षा दी गई है। फिर ऐसे बातों को दुष्कर्म की श्रेणी में रखने का औचित्य नहीं बनता।