चचा शिवपाल को लड़वाना चाहिए था मैनपुरी का उप-चुनाव

चचा शिवपाल को लड़वाना चाहिए था मैनपुरी का उप-चुनाव

चचा शिवपाल को लड़वाना चाहिए था मैनपुरी का उप-चुनाव

“अखिलेश वो रस्सी हैं जो जल जायेगी लेकिन बल नहीं जाएगा”

पंकज यादव पत्रकार

दिल्ली क्राउन

नई दिल्ली, नवंबर 15: “धरतीपुत्र” मुलायम सिंह के स्वर्गवास के बाद मैनपुरी उप-चुनाव के लिए 5 दिसंबर को वोट डाले जाने हैं। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल रावत यादव को मैदान में उतारा है। कुछ दिन तक पूर्व सांसद और मुलायम सिंह के प्रपोत्र तेज प्रताप यादव का नाम चला, लेकिन आखिरकार टिकट मिली “बहु रानी” को ही।

पत्नी डिंपल को मैनपुरी उप-चुनाव लड़वा कर आखिर अखिलेश क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? ये जानने की कोशिश की हमने।

पूर्व में भी डिंपल लोक-सभा सदस्या रह चुकी हैं, लेकिन सांसद के रूप में कुछ ख़ास नहीं कर पाईं। जब भी संसद परिसर में देखी गईं उनमे राजनीतिक परिपक्वता की कमी नज़र आई। एक-आध बार संसद में बोलती हुई दिखीं, लेकिन कुछ ख़ास छाप नहीं छोड़ पाईं।

अब तक के अपने राजनीतिक सफर में डिंपल ने दो चुनाव जीते और दो चुनाव हारे हैं। 2009 के आम चुनाव के दौरान अखिलेश दो सीटों से चुनाव जीते थे, और बाद में उन्होंने फ़िरोज़ाबाद सीट खाली कर दी थी। उप-चुनाव हुआ तो पत्नी डिंपल को चुनाव मैदान में उतार दिया। लेकिन पूर्व-सपाई (सपा नेता) राज बब्बर ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ते हुए बहु रानी को करारी हार से नवाजा था। तीन साल बाद 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने कन्नौज की सीट भी खाली कर दी तो पत्नी डिंपल निर्विरोध सांसद बन गईं।

दो साल बाद 2014 आम चुनाव में भी डिंपल कन्नौज से लोक-सभा पहुंचने में कामयाब रहीं। पांच साल तक माननीय सांसद कहलाने के बाद 2019 में बहु रानी एक बार फिर चुनाव हार गईं।

अब एक बार फिर चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं। अखिलेश यादव के हवाले से बताया गया कि परिवार व पार्टी में सब की राय लेकर और सब से चर्चा करने के बाद ही डिंपल को पार्टी का प्रतियाशी बनाया गया। उपचुनाव के लिए नामांकन भरने वाले दिन मैनपुरी में राज्य-सभा सांसद राम गोपाल यादव ने पत्रकारों को बताया कि शिव पाल से पूछ कर ही निर्णय लिया गया, लेकिन कुछ ही देर में शिवपाल ने स्पष्ट कर दिया कि उनसे इस बारे (मैनपुरी से उम्मीदवारी) में किसी ने चर्चा नहीं की, और उनको इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

राम गोपाल और शिव पाल का अमर सिंह के समय से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है। जहाँ एक तरफ शिवपाल और अमर सिंह “साधना गुप्ता कैंप” के माने जाते थे, वहीँ दूसरी ओर राम गोपाल एक दम अलग थे। बाद में, अपनी राजनीति कायम रखने के लिए राम गोपाल ने अखिलेश की पैरोकारी शुरू कर दी, और 2012 के चुनाव के बाद मुलायम सिंह की जगह अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब रहे।

अखिलेश के मुख्यमंत्री बनते ही परिवार में कलह शुरू हो चुकी थी और चचा भतीजे (अखिलेश, शिव पाल) के बीच दूरियां बढ़ती ही चली गईं।

10 अक्टूबर को नेताजी मुलायम सिंह के निधन के बाद कई मौकों पर शिवपाल को अखिलेश के साथ देखा गया। अस्थियों के विसर्जन के लिए चार्टर्ड विमान में दोनों को साथ आते-जाते देखा गया। चाचा भतीजा में सुलह के आसार दिखने लगे थे, हालांकि दोनों की बॉडी-लैंग्वेज कुछ ख़ास नहीं थी।

पिछले दो दिनों के घटनाक्रम को देखा जाए तो निष्कर्ष यही निकलता है कि चचा भतीजे में कुछ भी ठीक नहीं है।

इस बाबत मैंने उत्तर प्रदेश के कई कोनों में यादव व अन्य जातियों से सम्बन्ध रखने वाले कई  सपा नेताओं से बात की। करीब-करीब सब की राय थी कि मैनपुरी के इस उप-चुनाव में अखिलेश को चचा शिवपाल को आगे कर पार्टी का उम्मीदवार बनाना चाहिए था। ऐसा करने से चचा लोक-सभा पहुँच जाते और दिल्ली की राजनीति सँभालते। परिवार का कलह भी ख़त्म हो जाती, और एक नयी शुरुआत होती।

लखनऊ में रहने वाले समाजवादी पार्टी के एक शीर्ष नेता के अनुसार – “लेकिन ऐसा होने से दिल्ली में पार्टी के दो पावर सेंटर बन जाते – राम गोपाल और शिवपाल। राम गोपाल को स्वाभाविक रूप से ये स्तिथि नागुज़ारा होती। पार्टी में अपनी जगह बरकरार रखने की जुगत में राम गोपाल ने अखिलेश को साफ़ शब्दों में कह दिया कि शिवपाल को किसी भी हालत में मैनपुरी से पार्टी की टिकट ना दी जाए।

2012 में मुख्यमंत्री बनवाने के चचा राम गोपाल के एहसान को याद रखते हुए अखिलेश ने उन की बात सर आँखों पर रखी, और चचा शिवपाल की आस पर पानी फेरते हुए पत्नी डिंपल को ही टिकट देने का ऐलान कर दिया।”

वरिष्ठ सपा नेता ने आगे कहा – “अखिलेश वो रस्सी हैं जो जल जायेगी लेकिन बल नहीं जाएगा”।

बहरहाल, स्वर्गीय मुलायम सिंह के परिवार की कलह की कहानी अभी बाकी है। मैनपुरी उप-चुनाव और उसके पश्चात ऊँट किस करवट बैठेगा, ये तो वक़्त ही बताएगा।

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