सर्वोच्च न्यायलय ने समलैंगिक जोड़ों को दिया जोर का झटका धीरे से
कहा शादी तो कर लो लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं
दिल्ली क्राउन ब्यूरो
नई दिल्ली: देश के सर्वोच्च न्यायलय ने आज (मंगलवार) को एक बहु-चर्चित विषय पर अपना आदेश सुनाते हुए कहा कि भारतवर्ष में समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार नहीं दिया जा सकता, लेकिन जो लोग ऐसी शादी करना चाहें वो कर सकते हैं और देश की सरकार को उनकी समाज में रक्षा प्रदान करनी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की खंडपीठ ने अपने फैसले में दो मुख्य बातें कहीं – समलैंगिक विवाहों को संवैधानिक मान्यता नहीं दी सकती लेकिन जो लोग ऐसे विवाह-बंधन में बंधना चाहते हैं वो शादी करने के बाद बच्चा गोद ले सकते हैं, और उनको समाज में इज़्ज़त से रहने का भी अधिकार है।
समलैंगिक लोगों के बीच में रिश्ते और उनके विवाह का मुद्दा भारत में पिछले कई दशकों से काफी चर्चा में रहा है। आज भारत में एक जमात खड़ी हो गई है जिसका कहना कि ऐसे विवाहों को कानूनी और संवैधानिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। 6 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक लोगों के बीच में रिश्तों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखते हुए कहा था कि ऐसे लोग आपस में रिश्ता तो रख सकतें हैं लेकिन विवाह नहीं कर सकते।
आज के फैसले का स्वागत करते हुए सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष आदीश. सी. अग्गरवाला ने कहा कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के रुख को मान लिया है।
“केंद्र सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय समलैंगिक लोगों के बीच विवाह को मान्यता नहीं दे सकता और इस मुद्दे पर सिर्फ और सिर्फ संसद ही कानून बना सकती है। मुझे ख़ुशी है आज सर्वोच्च न्यायालय ने भारत जैसे प्राचीन देश के अनुरूप ही अपने आदेश जारी किया। भारत देश की अपनी मान्यताएं हैं जिनमे समलैंगिक विवाह कहीं नहीं ठहरता,” अग्गरवाला ने कहा।