मथुरा विधानसभा में एस.के. शर्मा बन सकते हैं मंत्री श्रीकांत शर्मा के लिए गले की हड्डी…!

मथुरा विधानसभा में एस.के. शर्मा बन सकते हैं मंत्री श्रीकांत शर्मा के लिए गले की हड्डी

मथुरा विधानसभा में एस.के. शर्मा बन सकते हैं मंत्री श्रीकांत शर्मा के लिए गले की हड्डी

भाजपा छोड़ बसपा में आये एस.के. शर्मा हैं एक बड़ी शक्शियत के मालिक

पंकज पत्रकार

नई दिल्ली , जनवरी 21 (दिल्ली क्राउन): उत्तर प्रदेश चुनावों में मथुरा विधानसभा का काफी शोर है। चूँकि भाजपा बार-बार मतदाताओं को अयोध्या में बन रहे राम मंदिर को दिखाते हुए जोर शोर से नारा लगा रही है – “अयोध्या हुई हमारी, अब मथुरा कि बारी है”।

बता दें कि संतों का मानना है कि मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद ही असली कृष्ण-जन्मभूमि है, और मांग है कि वहां एक भव्य मंदिर का निर्माण होना चाहिए।

इस सबके चलते मथुरा का चुनाव और भी रोचक हो चला है।

“द दिल्ली क्राउन” की एक टीम ने मथुरा जाकर एक ‘ग्राउंड जीरो’ रिपोर्ट तैयार करने का प्रयास किया।

मथुरा से मौजूदा विधायक और मंत्री श्रीकांत शर्मा के लिए इस चुनाव में भाजपा के पूर्व हो चुके एस.के. शर्मा गले की हड्डी साबित हो सकते हैं। एस.के. शर्मा दो दशकों से भी ज्यादा से भाजपा में रहे, पिछला चुनाव 2017 में मथुरा से सटी हुई मांट विधानसभा से भाजपा की टिकट पर एक कठिन माना जाने वाला चुनाव लडे लेकिन 6000 मतों से हार गए।

उनके अनुसार हार के बाद भी पार्टी के सर्वोच्च नेताओं ने उन्हें 2022 में टिकट का आश्वाशन दे रखा था। लेकिन हाल ही में पार्टी के द्वारा जारी की गयी उम्मीदवारों की लिस्ट में जब अपना नाम नहीं पाया तो क्षुब्द हो गए, फूट-फूट कर रोये, और बसपा का दामन थामकर मथुरा विधानसभा से चुनावी ताल ठोक दी।

मथुरा-वासियों की माने तो एस.के. शर्मा के पास धन की कोई कमी नहीं। पिछले 5 सालों में मांट विधानसभा में विकास-कार्यों में करोड़ों रूपए फूँक चुके एस.के. शर्मा के पश्चिम बंगाल में कई स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी बताये जाते हैं। मथुरा विधानसभा में ब्राह्मण वर्ग और अन्य जातियों के बीच एस.के. शर्मा की एक साफ़-सुथरी छवि नज़र आती है और एक अच्छी पैठ बतायी जाती है।

जहाँ एक तरफ श्रीकांत शर्मा “दिल्ली कोटा” के एक भाजपाई नेता माने जाते हैं, वहीँ एस.के. शर्मा को मथुरा का एक मिलनसार और जमीन से जुड़ा हुआ सामजसेवी माना जाता रहा है।

मथुरा में अक्सर सुनने को मिलता है कि मंत्री श्रीकांत शर्मा पिछले पांच सालों में अपनी विधानसभा के लोगों के बीच बहुत कम नज़र आये और अक्सर मथुरा से बाहर ही पाए गए।

नाम न बताने की शर्त पर मथुरा के एक मशहूर शक्शियत ने बताया – “पिछले पांच सालों में श्रीकांत शर्मा ने शायद 50 दिन ही मथुरा में बिताये हों। उनके खिलाफ जनता के बीच काफी रोष है क्यूंकि वो जनता से जुड़ाव नहीं कर पाए और हमेशा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जुड़ाव में लगे हुए ही दिखाई दिए।”

श्रीकांत शर्मा का 2017 में पहली बार विधायिकी का चुनाव लड़ना और जीतते ही बिजली-मंत्री जैसा “मालदार” कार्यभार मिल जाना यह दर्शाता है कि उनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बहुत अच्छी पकड़ है।

चुनाव आयोग के भरसक प्रयासों के बावजूद भी बेशनाप धन का उपयोग (या कहें दुरूपयोग) जग जाहिर है। मथुरा के चुनावी बाजार में काफी शोर है कि पिछले पांच सालों में मंत्री जी ने अपनी “आर्थिक स्तिथि कई गुना मजबूत कर ली है”। ऐसे में अब देखना है कि मथुरा विधानसभा में चुनावी अंजाम धन के बल पर तय होता है, या फिर वास्तविक मुद्दों पर…!!

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