घुमन्हेड़ा वार्ड (40-S) के हालात बता रहे हैं कि गैर-यादव महिला बन सकती है पार्षद

घुमन्हेड़ा वार्ड के हालात बता रहे हैं कि गैर-यादव महिला बन सकती है पार्षद

घुमन्हेड़ा वार्ड के हालात बता रहे हैं कि गैर-यादव महिला बन सकती है पार्षद

नई दिल्ली, मार्च 14 (दिल्ली क्राउन): अगर 2007 में हुए निगम के चुनावी नतीजों पर नज़र डालें तो ऐसा प्रतीत होता है कि घुमन्हेड़ा वार्ड से इस बार भी गैर-यादव प्रत्याशी ही बाजी मारेगी। 15 साल पहले हुए चुनाव के जैसे ही यादव वोटों का बिखराव होना तय है।

इस वार्ड में करीब 23 गांव व कुछ कच्ची कालोनियां हैं। कुल मिला कर करीब 65,000 वोटर हैं जिनमें यादवों का एक बड़ा हिस्सा है, जबकि करीब-करीब सभी जातियों के लोग भी शामिल हैं। एक बड़ा वोटबैंक ब्राह्मण मतदाताओं का भी है।

2007 के निगम चुनाव में छावला गांव इस वार्ड का हिस्सा था, और वार्ड का नाम भी छावला ही था। कई यादव उम्मीदवार मैदान में थे और पपड़ावट के कोंग्रेसी उम्मीदवार ओम दत्त यादव को करीब 800 वोटों से मुहं की खानी पड़ी थी। और बाजी मारी थी एक छावला गांव के गैर-यादव आजाद उम्मीदवार ने। छावला गांव के लोग उस चुनाव को आज भी बड़े चाव से याद करते हैं !

ठीक उस चुनाव की तरह ही, इस बार भी कई “यादव पतिदेव” अपनी-अपनी पत्नी को चुनावी उम्मीदवार बनाने के चक्कर बढ़-चढ़ कर आगे आ रहे हैं। मतलब, अपने समुदाय की वोटों का बिखराव करने पर उतारू हैं।

फिलहाल चुनाव अधर में लटके हैं, लेकिन ये “यादव पतिदेव” अब तक लाखों रूपए भंडारे आयोजित करने में लुटा चुके हैं। इनका मकसद साफ़ है – चुनाव तो लड़ेंगे ही, चाहे नतीजा कुछ भी हो। घुम्मनहेड़ा वार्ड की राजनीति गरम है, और भंडारों में लोग मुफ्त का गरम-गरम खाना खा कर खूब मजे लूट रहे हैं !

घुम्मनहेड़ा गाँव के एक शक्श ने तो अब तक तीन-तीन भंडारे आयोजित करके अपनी पत्नी को चुनाव में उतारने का इरादा साफ़ कर दिया है। वहीँ दूसरी तरफ, कांगनहेड़ी गांव एक “यादव पतिदेव”, जो की भाजपा से सम्बन्ध रखते हैं, भी पंडवाला गांव में अपना नया चुनावी ऑफिस खोल कर एक भंडारा आयोजित कर चुके हैं। ये जनाब मान कर चल रहे हैं कि उनकी पत्नी की जीत निश्चित है, कोई हरा ही नहीं सकता।

कांगनहेड़ी गांव के ही अन्य यादव जनाब हैं जिन्होंने अपने घर की एक सदस्या को चुनाव में कुदा रखा है। भाजपा की टिकट पाने की फिराक में लाखों रुपयों के बड़े-बड़े पोस्टर बैनर दीवारों और बिजली के खम्बों पर सजा दिए हैं। वार्ड के महिला-आरक्षित (की घोषणा) होते ही यह जनाब अपनी परिवार की इस सदस्या के लिए भाजपा की जिला स्तरीय कमिटी का एक छोटा सा पद भी ला चुके हैं, ताकि उम्मीदवार की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर प्रश्नचिन्ह ना खड़े हों !

इनके अलावा हसनपुर, पपड़ावट व अन्य गावों से भी अनेक “यादव पतिदेव” भी चुन्नवी बिगुल फूंकते नज़र आ रहें हैं।

छावला थाने के अंतर्गत आने वाले इस वार्ड में पुलिस की नाक के नीचे बे-रोकटोक खूब शराब भी पिलाई जा रही है। मुफ्त में शराब पीने वालों की तो मौज से आयी हुई है !

इन “यादव पतिदेवों” के पास पानी की तरह बहाने के लिए पैसा कहाँ से आ रहा है इस पर यहाँ  के स्थानीय निवासी प्रश्न-चिन्ह लगाते हैं, क्यूंकि लगभग सब ही बे-रोज़गार बताये जाते हैं !

पूरे परिदृश्य में राजनितिक रूप से परिपक़्व अगर कोई उम्मीदवार दिखाई पड़ती है तो वो है घुमन्हेड़ा गांव की एक बहु जो कि एक गैर-यादव परिवार से आती है और आम आदमी पार्टी से कई सालों से जुडी हुई बतायी जाती है। यादव उम्मीदवारों की भंडारे करने और शराब पिलाने की चुनावी रणनीति से परे, यह महिला उम्मीदवार घर-घर जाकर अपना चुनाव प्रचार करने में जुटी हुई अक्सर दिखाई देती है।

केंद्र सरकार की दखल से फिलहाल चुनाव पर रोक लगा दी गयी है। बताया यह जा रहा है कि केंद्र सरकार तीनों निगमों को एक बनाने के बाद ही चुनाव करवाने के मूड में है। हालांकि आम आदमी पार्टी का आरोप है कि चुनाव इस लिए टाले गए क्यूंकि “भाजपा चुनाव से डर कर भागना चाहती है”।

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