‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ पर बता दें कि भ्रूण जांच और कन्या भ्रूण हत्या धड़ल्ले से हो रही है

राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बता दें कि भ्रूण जांच और कन्या भ्रूण हत्या धड़ल्ले से हो रही है

राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बता दें कि भ्रूण जांच और कन्या भ्रूण हत्या धड़ल्ले से हो रही है

सरकार के सख्त कानून साबित हो रहे विफल

पंकज पत्रकार

नई दिल्ली, जनवरी 24 (दिल्ली क्राउन): आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है। पिछले १५ सालों से मनाया जाता रहा है। सरकार की नीयत है कि हर साल इस दिन (जनवरी २४) बेटियों के अधिकारों के बारे में देशव्यापी जनजागरण किया जाए। हमारे पुरुष प्रधान समाज में लोगों को बताया जाए कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं होता।


सरकार के स्तर पर तो भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से हमारी मानसिकता में थोड़ा बहुत तो फर्क पड़ा है, लेकिन आज भी भ्रूण जांच और कन्या भ्रूण हत्या घर-घर में हो रही है, ऐसा कहना सरासर गलत नहीं होगा। समाज में बैठते वक़्त बड़ी-बड़ी बातें हांकना कि बेटी-बेटे में कोई फर्क नहीं, और घर में चुपचाप भ्रूण जांच करवाना और कन्या मिलने पर उसको माँ के पेट में ही ख़तम करवा देना, ये हमारे समाज में एक आम बात है।

हॉस्पिटलों व क्लीनिकों में भ्रूण हत्या के खिलाफ बड़े-बड़े बोर्ड लगे होने के बावजूद भी हकीकत तो यह कि अगर पहला बच्चा कन्या है तो एक औसत परिवार कि चाहत रहती है कि दूसरा बच्चा बेटा ही हो। भ्रूण जांच के लिए महंगी-महंगी फीस देकर लिंग का पता लगाना और लड़की होने पर “सफाई” करवा देना, ऐसी मानसिकता आज भी अमूमन देखने और सुनने को मिल जाती है।

ये भी बता दें कि ऐसी मानसिकता सिर्फ गांवों तक ही सीमित नहीं, शहरों में रहने वाले तथाकथित मॉडर्न लोगों में भी है पायी जाती है। सिर्फ गरीब या मध्यमवर्गीय परिवारों में ही नहीं, बल्कि अमीर घरानों में भी बराबर की मात्रा में व्याप्त है। और, ऐसा भी नहीं कि ऐसी मानसिकता बस कुछ ही जातियों के लोगों में है, बल्कि तकरीबन हर जाती के लोगों में कूट-कूट कर भरी हुई है।

छोटे छोटे शहरों में गयनेकोलॉजिस्ट (महिलों की डॉक्टर) आज भी भ्रूण जांच कर पैसा कमाने की इच्छा रखती हैं। ऐसा भी सुनने में आता है पेट में लिंग चेंज करने की दवा भी बाज़ारों में चोरी छुपे उपलब्ध हैं !!

जानकारी के मुताबिक अमरीका में भ्रूण की जांच करवाना कोई अपराध नहीं है। हाल ही में हमारी एक जानकार जो कि अभी अमरीका में मौजूद है उसका दूसरा बच्चा बेटा हुआ। पहले बेटी थी। गर्भवती होते ही जांच करवाई गयी, और पता लगते ही कि बेटा होने वाला है , ख़ुशी ख़ुशी बेटा होने का इंतज़ार किया गया।

केरल व उत्तर पश्चिम के कुछ राज्यों में एक प्रथा के अनुसार शादी के बाद लड़के को ताःउम्र अपने ससुराल में रहने होता है। वहां असलियत में बेटी और बेटे में कोई ख़ास फर्क नहीं समझा जाता। शायद कुछ ऐसी ही योजनाएं बनानी होंगी जिस से कि लड़कियों को “पराया धन” मानना बन्द हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *