MCD चुनाव: छावला वार्ड में भाजपा के लिए बनते दिख रहे विपरीत समीकरण
जाट बनाम अहीर की रस्साकस्सी में अनुसूचित जाती के वोटर ही होंगे निर्णायक भुमिका में
पंकज यादव पत्रकार
नई दिल्ली, नवंबर 21: दिल्ली नगर निगम चुनाव में दो हफ़्तों का समय शेष है। चुनाव प्रचार जोरों पर है। हर उम्मीदवार जीत का दम्म भरता दिखाई देता है। चुनाव प्रचार के लिए उम्मीदवार जिस भी गांव में जा रहे हैं, ग्राम पंचायत व ग्रामवासी हर प्रत्याशी को वोट देने का पक्का वादा कर भेज देते हैं।
मानो ग्रामवासी हर उम्मीदवार को मीठी गोली दे रहे हों !
अगर पूरी दिल्ली का ज़ायका देखा जाए तो मुख्यतः मुकाबला भाजपा बनाम आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच है। भाजपा पिछले 15 सालों से दिल्ली नगर निगम में बहुमत में है, जबकि AAP इस बार भाजपा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर जनता से एक मौका मांगती हुई देखी जा सकती है। एंटी-इंकम्बेंसी का सबसे बड़ा फैक्टर भाजपा के खिलाफ जाता हुआ नज़र आता है।
अभी 15 दिन का प्रचार बचा है, लेकिन वोटरों ने चुनावी गणित, या समीकरण, लगाना व वोटों का जमा-घटा करना शुरू कर दिया है। छावला या घुमन्हेड़ा वार्डों में पार्षदी के पिछले तीन चुनावों के नतीजे देखें तो हर बार आज़ाद उम्मीदवार ने ही जीत हांसिल की है।
2017 में हुए चुनाव में तत्कालीन घुमन्हेड़ा वार्ड (SC आरक्षित) से लड़ते हुए कांगनहेड़ी गाँव के समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार दीपक मेहरा ने बाजी मारी थी। उस से पहले 2012 के छावला वार्ड के चुनाव में छावला गांव के आज़ाद उम्मीदवार प्रदीप जीते थे, जबकि 2007 के चुनाव में छावला गाँव के ही आज़ाद उम्मीदवार राजपाल नम्बरदार ने जीत हांसिल की थी।
मतलब साफ़ है कि पिछले चुनाव को हटा कर देखा जाए तो छावला गाँव के आज़ाद उम्मीदवारों का ही पार्षदी में दबदबा रहा है।
अब मौजूदा चुनाव पर नज़र डालें तो मैदान में मुख्यतः चार उम्मीदवार हैं – आम आदमी पार्टी (AAP) के जीता नम्बरदार (गांव दीनपुर), भाजपा के शशि यादव (गांव कांगनहेड़ी), और दो आज़ाद उम्मीदवार – सतवीर सिंह यादव (गांव घुमन्हेड़ा) और विजय राम (गांव छावला)।
सतवीर सिंह पहले भी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं, हालांकि असफल रहे थे, जबकि अन्य तीनों उम्मीदवार चुनावी जंग में नए हैं।
छावला वार्ड में आने वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से बात करने के बाद, और उनकी राय लेने के पश्चात, निष्कर्ष यह निकलता है कि चुनाव के सबसे आखिरी पड़ाव में छावला वार्ड जाट बनाम अहीर (यादव) के बीच सिमट कर रह जाएगा।
दो जाट उम्मीदवारों और दो यादव प्रतियाशियों के बीच चल रहे इस मुकाबले में वोटरों को एक बार फिर जातीय समीकरण देखने और समझने में दिमागी रस्साकशी करनी पड़ सकती है। जातीय समीकरण के चलते वोटों का बिखराव दोनों तरफ दिखाई पड़ता है। ऐसे में अनुसूचित जाती के वोटरों की भूमिका अहम हो जाती है।
छावला वार्ड में 14,000-15,000 अनुसूचित जातियों के लोगों की वोट हैं, जिनमे से करीब 12,000 वोट डलने की संभावना है। अनुसूचित जातियों के वोटबैंक का भाजपा से मोहभंग जगजाहिर है। आज़ाद प्रत्याशियों को वोट डाल कर अपनी वोट ना खराब करते हुए, इन वोटरों के पास सिर्फ एक ही विकल्प बचता है – आम आदमी पार्टी (AAP)।
भाजपा के उम्मीदवार को एंटी-इंकम्बेंसी के अलावा अनुसूचित जातियों के वोटबैंक के प्रतिकूल होने की चुनौती का भी सामना करना पड़ सकता है।
बहरहाल, दिसंबर 4 को मतदान होने के बाद दिसंबर 7 की दोपहर तक नतीजे आने की संभावना है। पिक्चर अभी बाकी है !
(पंकज यादव वरिष्ठ पत्रकार हैं। पिछले ढाई दशकों से अंतर-राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसियों में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।)