गुरुग्राम कोर्ट में एक अर्ज़ी 8 साल से है लंबित !
हर तारिख पर जज साहब 72 वर्ष की वृद्ध महिला को दे देते हैं अगली तारिख !!
दिल्ली क्राउन ब्यूरो
गुरुग्राम: गुरुग्राम एक महंगा शहर है। यहाँ किसानों की ज़मीनें बिकी जिसके बाद गांव-वालों को मोटा मुआवज़ा मिला। और, अब कॉर्पोरेट कल्चर होने की वजह से यहाँ रहने वालों की मोटी तनख्वाह है। लोगों की जेब गरम रहती है, और रोज़-मर्रा की ज़िन्दगी में पैसों का बोलबाला रहता है।
ऐसा प्रतीत होता है गुरुग्राम शहर में हर चीज़ पैसों में मिलती/बिकती है। फिर चाहे पुलिस हो, सरकारी दफ्तरों में अफसर हों, या जिला-न्यालय में न्याय हो !
एक दिलचस्प मामला सामने आया है जिसमें गुरुग्राम कोर्ट में एक 72 वर्ष की बुज़ुर्ग महिला की अर्ज़ी लगभग 8 साल से लंबित पड़ी है। कई जज बदल चुके हैं, लेकिन अर्ज़ी है कि वहीँ की वहीँ पड़ी हुई है !!
फिलहाल मामला (अर्ज़ी नंबर 182/2017) सिविल जज (सीनियर डिवीज़न) मनोज कुमार राणा की कोर्ट में लंबित है। सिविल जज राणा की कोर्ट में यह मामला मई 2021 (लगभग ढाई साल) से लंबित है, और करीब 30 बार तारिख-पे-तारिख लग चुकी हैं !
दोनों पक्षों के वकील कई-कई बार अपनी दलील पेश कर चुके हैं। 19 दिसंबर को जज राणा साहब ने एक बार फिर से दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनी और अपना फैसला देने का आस्वाशन दिया, लेकिन अभी तक फ़ैसले का इंतज़ार है।
दिलचस्प बात यह है कि गुरुग्राम कोर्ट की वेबसाइट पर लगे सभी आदेशों की भाषा एक जैसी ही है। सोमवार (8 जनवरी, 2024) को भी तारिख लगी, लेकिन कोर्ट का आदेश नहीं आया।
अर्ज़ी गुरुग्राम सेक्टर-7 की रहने वाली मुनिता यादव (आयु 72 वर्ष) की है। अर्ज़ी सिर्फ एक दीवानी मामले को बहाल (रिस्टोर) करने के लिए है। हर तारिख पर यह बुज़ुर्ग महिला अपने वकील के साथ कोर्ट जाती है, लेकिन अगली तारिख लेकर लौट आती है !!
“दिल्ली क्राउन“ से बातचीत में मुनिता यादव ने बताया – “पिछले दो महीनों में छह तारिख लग चुकी हैं, लेकिन जज राणा साहब हैं कि अपना फैसला सुनते ही नहीं ! एक छोटी सी अर्ज़ी पर 8 सालों से फैसला ना आना कई तरह के सवाल खड़े करता है। क्या गुरुग्राम में पैसों का बोलबाला न्याय भी खरीद सकता है ? क्या गुरुग्राम में न्याय बिकता है ? ऐसे कुछ सवाल मेरे ज़हम में अक्सर आते हैं। इतनी बार तारिख लगने के बाद तो यही लगता है कि प्रतिवादी के वकील ने कोर्ट को अपनी मुट्ठी में लिया हुआ है।”
उन्होंने आगे बताया – “जब हम कोर्ट में मौजूद होते हैं तो कोर्ट के स्टाफ द्वारा अगली तारिख लगा दी जाती है, लेकिन अगले दिन जब वेबसाइट पर कोर्ट का ऑनलाइन आर्डर देखते हैं तो पता चलता है कि अभी बहस पूरी नहीं हुई है! क्या चल रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा।”
वादी मुनिता यादव ने आगे बताया, “इस अर्ज़ी की पहली सुनवाई मई 2017 में हुई थी। कोर्ट के चक्कर काटते-काटते लगभग 8 साल हो चुके, लेकिन इस अर्ज़ी का निबटारा नहीं हो रहा।”
सन्न 2016 में मुनिता यादव ने गुरुग्राम स्थित सिकंदरपुर (घोसी) गॉव में पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा लेने के लिए कोर्ट में याचिका लगाई थी। लेकिन उनकी पहली की एक महिला-वकील की एक छोटी से गलती की वजह से याचिका डिसमिस हो गई थी। उसके बाद वादी ने अपना वकील बदल कर दीवानी मुक़दमे को बहाल (रिस्टोर) करने की अर्ज़ी लगाई थी, जो कि अब तक कोर्ट में लंबित है।
मुनिता यादव ने बताया, “पुत्र की चाह में मेरे पिताजी नम्बरदार राम मेहर (फिलहाल आयु करीब 95 वर्ष) ने 1979 में गैरकानूनी तरीके से दूसरी शादी कर ली थी, और हमारी माँ और हम छह बहनों से फासला बना लिया था। उनकी दूसरी बीवी से 3 लड़के पैदा हुए। अब हमारे पिताजी सैकड़ों करोड़ रुपयों की संपत्ति अपने पुत्रों के नाम करवाने चाहते हैं। और हम छह बहनों को बेदखल करना चाहते हैं। इसलिए हमने गुरुग्राम कोर्ट में यह दीवानी मुकदमा किया था।”