गणतंत्र दिवस आयोजन और इतिहास बदलने की एक नापाक कोशिश

गणतंत्र दिवस आयोजन और इतिहास बदलने की एक नापाक कोशिश

गणतंत्र दिवस आयोजन और इतिहास बदलने की एक नापाक कोशिश

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय

नई दिल्ली, जनवरी 23: 21वीं सदी के दूसरे दशक दूसरे साल यानी 2022 का गणतंत्र दिवस आयोजन इतिहास का  एक याद रखने वाला  काल खण्ड बन गया है।

इस साल के ये आयोजन इसलिए याद रखे जाएंगे क्योंकि इस आयोजन के बहाने इस बार कुछ ऐसा और नया हुआ है जो पहले कभी नहीं हुआ था। याद हो कि 1950 में आजाद देश भारत का अपना संविधान लागू होने का सिलसिला शुरू होने पर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड और गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन का सिलसिला भी शुरू हुआ था।

शुरू के कुछ साल तक गणतंत्र दिवस परेड नैशनल स्टेडियम में हुआ करती थी लेकिन बाद में राष्ट्रपति भवन और नैशनल स्टेडियम के बीच राजपथ पर परेड का आयोजन शुरू हो गया था।

सभी जानते हैं कि इस परेड में सेना के तीनों अंगों के साथ ही विभिन्न राज्यों के पुलिस बालों एनसीसी जवानों और अनेक स्कूलों और राज्यों की झाँकियाँ भी शामिल होती हैं। इस परेड के अलावा भी और बहुत कुछ होता है गणतंत्र दिवस समारोह में।

गणतंत्र दिवस से एक-दो दिन पूर्व शुरू होने वाले एक सप्ताह तक चलने वाले इस समारोह का समापन 29 जनवरी को राष्ट्रपति भवन के करीब विजय चौक पर गोधूलि के व्यक्त होता है।

इस वर्ष के गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में सबसे बड़ा बदलाव तो यह हुआ है कि देश की नई संसद और सेंट्रल विस्टा के निर्माण की वजह से परेड स्थल राजपथ नए रूप में सामने आया है। इस राजपथ में दो बड़े बदलाव यह भी हुए हैं कि राजपथ के बीच स्थित इंडिया गेट में शहीदों की याद में 24 घंटे जलने वाली “अमर जवान ज्योति” अब यहाँ से हटा ली गई है और उसका इंडिया गेट परिसर में ही स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जलने वाली ज्योति में विलय कर दिया गया है।

इस परिवर्तन का असर यह हुआ कि गणतंत्र दिवस के मौके पर परेड की सलामी लेने से पहले जो प्रधानमंत्री “अमर जवान ज्योति” में पुष्पांजलि के लिए जाया करते थे, अब वहाँ न जा कर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जाया करेंगे।

गणतंत्र दिवस समारोह के मौके पर दूसरा बदलाव यह हुआ है कि राजपथ पर ही स्थित एक खाली छतरी में 23 जनवरी 2022 के दिन सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौके पर उनकी एक हॉलों-ग्राम प्रतिमा की स्थापना कर दी गई है। इस संबंध में तीसरा और महत्वपूर्ण बदलाव यह होने जा रहा है कि अब गणतंत्र दिवस के समापन  समारोह (बीटिंग द रीट्रीट) के समय गांधीजी की पसंदीदा धुन “अबाइड विद मी” उस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं होगी।

महात्मा गांधी की यह पसंदीदा धुन साल 1950 से शुरू हुए गणतंत्र दिवस समारोह के समापन समारोह पर हमेशा सी बजती रही है लेकिन इस बार इस धुन को कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है। इससे पहले साल 2020 में भी इस धुन को हटाने की बात हुई थी लेकिन बाद में इसे शामिल कर लिया गया था।

यह धुन क्यों हटाई गई इसका जवाब इस कार्यक्रम से जुड़े किसी भी वरिष्ठ सैन्य अधिकारी के पास नहीं है। लगता है यह सब ऊपर के आदेश से हुआ है। यह ऊपर वाला कौन है सब जानते हैं।

सवाल यह है कि जो व्यक्ति या समूह और राजनीतिक संस्था महात्मा गांधी के नाम पर स्वच्छता के बहाने अपनी राजनीतिक बिसात का विस्तार करने से संकोच नहीं करता/करती है, उसे गांधी की पसंदीदा संगीत की धुन को गणतंत्र दिवस समापन समारोह कार्यक्रम से हटाने में किसी तरह की दिलचस्पी क्यों होने लगी।

गांधी की पसंदीदा धुन को कार्यक्रम से हटाने के साथ ही इस मौके पर इस बार किए गए अन्य बदलाव भी कहीं न कहीं राजनीतिक दुराग्रहों से ग्रसित ही दिखाई देते हैं।

कहना गलत नहीं होगा कि तमाम कोशिशें देश का इतिहास बदलने की रणनीति के तहत ही की जा रही हैं ।

“अमर जवान ज्योति” के राष्ट्रीय युद्ध समारक की ज्योति में विलय की बात को ही लें तो यह मंशा साफ नजर आती है। अमर जवान ज्योति का इतिहास में महत्व 1971 के युद्ध में सहीद हुए भारतीय सैनिकों का सम्मान करना ही नहीं है बल्कि इसका महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस युद्ध में भारत ने अमेरिका की सहायता पर पालने वाले पाकिस्तान को मुंह तोड़ जबाब देते हुए पाकिस्तान के विभाजन साथ ही बांग्लादेश के रूप में एक नए देश के अभ्युदय का मार्ग भी प्रशस्त किया था।

“अमर जवान ज्योति” उन्हीं सैनिकों के सम्मान में साल 1972 से जलाई जा रही थी। इस ज्योति का राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जलने वाली ज्योति में विलय करने से बांग्लादेश बनने वाली घटना और पाकिस्तान का दंभ टूटने वाली घटना का ऐतिहासिक प्रसंग ही खत्म हो जाता है।

जो लोग बात-बात पर रोटी, कपड़ा और मकान की बात को हिन्दू-मुस्लिम और पाकिस्तान तक ले जाने से बाज नहीं आते, आज वही अमर जवान ज्योति के दूसरी ज्योति में विलय कर देने के अपने प्रयासों से कहीं न कहीं पाकिस्तान का समर्थन करते ही नजर आते हैं।

इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि जिस सुभाष चंद्र बोस की होलोग्राम प्रतिमा हमारे प्रधानमंत्री 23 जनवरी को इंडिया गेट की राजपथ स्थित छतरी में स्थापित करते हैं, उन्ही सुभाषचंद्र बोस की जीवनी पर आधारित बंगाल सरकार की झांकी को इस बार गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल तक नहीं किया जाता।

ध्यान रहे कि पश्चिम-बंगाल में गैर भाजपा तृणमूल काँग्रेस की सरकार है और “अमर जवान ज्योति” जलाने का सिलसिला जिस समय शुरू हुआ था उस समय देश में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में काँग्रेस पार्टी की सरकार थी और उसी दौर में  भारत के चीर शत्रु पाकिस्तान के विभाजन के बाद बांग्लादेश का गठन हुआ था।

इसी संदर्भ में एक तथ्य यह भी महत्वपूर्ण है कि जो लोग आजाद भारत में सुभाषचंद्र बोस को देश की आजादी के लिए किए गए उनके योगदान के लिए समुचित समां न देने का आरोप लगाते हैं वो लोग इस सत्य को बड़ी खूबसूरती के साथ छिपा देते हैं कि इसी इंडिया गेट के पास ही दिल्ली के ल्यूटीयंस जोने में स्थित संसद भवन परिसर में ही सुभाषचंद्र बोस की आदम कद कांस्य प्रतिमा है।

इस प्रतिमा का अनावरण 23 जनवरी 1997 को देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर डायल शर्मा ने किया था। नेता जी की यह प्रतिमा बंगाल सरकार ने उपलब्ध कराई थी। बंगाल के मूर्तिशिल्पी कार्तिक चंद्र पाल द्वारा तैयार की गई सुभाष चंद्र बोस की यह प्रतिमा संसद भवन के गेट नंबर 5 और संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष (सेंट्रल हाल) के बीच प्रधानमंत्री कार्यालय के पास अवस्थित है .

(ज्ञानेन्द्र पाण्डेय दिल्ली में एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार निजी हैं)

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