पांच राज्यों के बाद अब दिल्ली में भी चुनावी सरगर्मी तेज
नए वार्ड हुए घोषित; निगम चुनाव होने हैं अप्रैल में
पंकज पत्रकार
नई दिल्ली, जनवरी 26 (दिल्ली क्राउन): मंगलवार रात को दिल्ली चुनाव आयोग के द्वारा नए निगम वार्डों की घोषणा करते हैं राष्ट्रीय राजधानी में चुनावी सरगर्मी अचानक बढ़ गयी।
पिछले कई दिनों से पड़ रही भीषण ठण्ड के चलते अचानक चुनावी माहौल गर्म हो गया और चुनावी खिलाड़ी एकाएक घरों से निकल कर गली-मोहल्लों में चाय पर चर्चा करते नज़र आये।
कुछ (पार्षदों) की तो मानो दूकान सी बंद हो गयी हो, और कुछ की बांछे खिल गयी, क्यूंकि रोटेशन के चलते जो वार्ड SC/महिला आरक्षित थे उन्हें आरक्षण से मुक्त करके सामान्य कर दिया गया है, और जो वार्ड सामान्य थे उन्हें आरक्षित कर दिया गया।
वैसे तो दिल्ली निगम में पार्षदों की कुछ ख़ास तनख्वा नहीं होती, लेकिन एक बार निगम का चुनाव जीत जाने के बाद पार्षदों की “आर्थिक स्तिथि” में दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की देखी जा सकती है।
पांच वर्षों में जिनके पास साईकिल भी नहीं होती उन्हें महंगी गाड़ियों में चलते हुए देखा जा सकता है, और रातों-रात जगह-जगह पर जमीन व प्लाटों के मालिक बन जाते हैं।
पार्षद चाहे पुरुष हो महिला, इस से कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ता चूँकि महिला आरक्षित वार्डों में भी “पैसों का लेन-देन” तो पार्षदों के पतिदेव ही करते हैं ! ऐसे वार्डों में ज्यादातर असली पार्षद तो पति ही रहते हैं, महिला पार्षद तो बस हस्ताक्षर करने की भूमिका में ही रहती हैं !!
भ्रष्ट माने, और कहे, जाने वाले दिल्ली निगमों में बजट को लेकर हमेशा मारा-मारी ही दिखाई पड़ती है। फिलहाल भाजपा का आरोप है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर दिल्ली के तीन निगमों का 13 हज़ार करोड़ रूपए बकाया है, जबकि दिल्ली सराकर की माने तो भाजपा-शाषित तीनों निगम पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार से सीधे तौर पर बजट लेने में नाकामयाब रही चूँकि तीनों निगम “भ्रष्टाचार में पूरी तरह से लिप्त हैं”।
इस साल दिल्ली निगम के चुनाव काफी रोचक होने की उम्मीद है। जहाँ एक तरफ भाजपायी नेता आम आदमी पार्टी पर नयी आबकारी नीति को लेकर हमला बनाये हुए हैं, वही दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भाजपा-शाषित तीनों निगमों में कथित तौर पर व्याप्त भ्रष्टाचार की कलाई खोलने पर आतुर है।